कृष्ण भक्ति पर सुंदर कविता
मीराबाई की प्रेम की थाल
मीराबाई के नाम से दुनिया में ऐसा कौन है जो परिचित ना हो। उनकी कृष्ण भक्ति की मिसाल का लोहा आज भी लोग मानते हैं । हृदयानुभूति, विरह की पीड़ा और प्रेम की तन्मयता से लिप्त मीराबाई के पद बसबस ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। कहा जाता है कि बचपन में एक बार मीराबाई खेल ही खेल में भगवान श्रीकृष्ण को अपना दूल्हा मान बैठी। तभी से तन-मन और धन से बड़े ही निष्ठा भाव के साथ वे उनका पूजन करती रही। अच्छा खासा राजघराने का ठाठ-बाट और लोभ भी उन्हें इस कर्तव्य पथ से विचलित नहीं कर सके। उनके प्रेम व भक्तिरस से सने भावों को सरल रूप में कुछ इस प्रकार की रचना में अभिव्यक्त करने की चेष्टा की गई है……………..
कृष्ण भक्ति पर सुंदर कविता:
मीराबाई की प्रेम की थाल
चक्षुओं से झर जाने दो
अधरों पर बरस जाने दो
जो आंसू परोस नहीं पाए अपने प्रेम की थाल
खुद-ब-खुद उन्हें परस जाने दो।
बाट जोहती अखियां मेरी
लोक-लाज सब डार चली
आंखों का कजरा यूं बिखरा
दिल के पट सब खोल चली
चातक सी होकर मैं गिरधर
देखो कितनी प्यासी हूं
प्रीत की बूंद को तरसी मैं तो
छोड़ के सब जागीर चली
रूह में उतर जाने दो
मोती बन ठहर जाने दो
अपने दिल की तंग गलियों में बनके
प्रेम वर्षा की फुहार
मुझे बरस जाने दो।।
कौन सी बात पर रुठे प्रीतम
व्याकुल हो गई है अखियां
ऊंची हरी-हरी डालिन पर
झूला डार रही सखियां
लंबी पेंग भरूंगी मैं तो
ओढ़ चुनर आई कुसुंबी हूं
दादुर, मोर ,पपीहा ,कोकिल
सब तांके तेरी झंकियां
मौसम घुमड़ जाने दो
भक्ति उमड़ जाने दो
चाकर जान अपने चरणों की
जोगिन से जोड़ दिलों के तार
कर सुहागन उसे हरष जाने दो।।
यह माटी की काया गोविंद
तू तो ठहरा अविनाशी
विरह कथा मैं किसे सुनाऊं
तू तो लागे सन्यासी
काटो जनम-मरण की फांसी
मैं अबला यह अरज करूं
लिपटा तन-मन तुम्हीं से माधव
तुम्ही प्रयाग, तुम्ही काशी
पीर छलक जाने दो
अश्रु ढुलक जाने दो
मीरा पूछ रही रो- रो के
मेरे प्राण आधार
हो कभी दरश जाने दो।।
…….. ‘अनु-प्रिया’
Beautiful Poem/ Poetry/ Kavita on Krishna Bhakti
Mirabai ki Prem ki thaal
chakshuon se jhar jaane do
adharon par baras jaane do
jo aansuu paros nahiin paae apane prem kii thaal
khud-b-khud unhen paras jaane do.
baaṭ johatii akhiyaan merii
lok-laaj sab ḍaar chalii
aankhon kaa kajaraa yuun bikharaa
dil ke paṭ sab khol chalii
chaatak sii hokar main giradhar
dekho kitanii pyaasii huun
priit kii buund ko tarasii main to
chhod ke sab jaagiir chalii
ruuh men utar jaane do
motii ban ṭhahar jaane do
apane dil kii tang galiyon men banake
prem varshaa kii phuhaar
mujhe baras jaane do..
kaun sii baat par ruṭhe priitam
vyaakul ho gaii hai akhiyaan
uunchii harii-harii ḍaalin par
jhuulaa ḍaar rahii sakhiyaan
lambii peng bharuungii main to
odh chunar aaii kusunbii huun
daadur, mor ,papiihaa ,kokil
sab taanke terii jhankiyaan
mowsam ghumad jaane do
bhakti umad jaane do
chaakar jaan apane charaṇon kii
jogin se jod dilon ke taar
kar suhaagan use harash jaane do..
yah maaṭii kii kaayaa govind
tuu to ṭhaharaa avinaashii
virah kathaa main kise sunaauun
tuu to laage sanyaasii
kaaṭo janam-maraṇ kii phaansii
main abalaa yah araj karuun
lipaṭaa tan-man tumhiin se maadhav
tumhii prayaag, tumhii kaashii
piir chhalak jaane do
ashru ḍhulak jaane do
miiraa puuchh rahii ro- ro ke
mere praaṇ aadhaar
ho kabhii darash jaane do..
……. ‘Anu-priya’
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