Budhape ki sanak per Khubsurat Hindi kavita
बुढ़ापा उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है जिसमें इंसान को अपनी बिताई गई पूरी जिंदगी का सार नजर आने लगता है। जवानी में मीलों तक कदम नापने वाले पैर थोड़ी दूर चलने में ही बस थक जाते हैं। लहराते काले-काले बालों पर सफेदी छा जाती है। आंखों से धुंधला दिखाई देने लगता है तो कानों की सुनने की शक्ति भी क्षीण पड़ जाती है। त्वचा में सिकुड़न के साथ-साथ दिमागी ताकत भी शिथिल पड़ जाती है । स्मरण-शक्ति की हालत तो भूल-भुलैया जैसी हो जाती है। इस प्रकार की स्थिति को इस कविता में उतारने का प्रयास किया गया है अगर आपको अनुप्रिया द्वारा रचित यह कविता बुढ़ापे की सनक पर खूबसूरत कविता | Beautiful Heart Touching Poem on Old Age in Hindi पसंद आती है तो कृपया कर इसे आगे शेयर अवश्य करें और हमें कमेंट कर बताएं। आपकी राय हमें और अधिक अच्छा लिखने की प्रेरणा देती रहेगी।
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बुढ़ापे की सनक पर खूबसूरत कविता
Beautiful Heart Touching Poem on Old Age in Hindi
कुछ अचंभित ठगा- ठगा सा
अंतकरण मेरे अंतरद्वंद मचा सा
दिशाविहीन उसकी मुखाकृति को अनिमेष देखता रहा मैं
वो शख्स खड़ा दिखा दर्पण में थोड़ा मिला- अनमिला सा
जिज्ञासाओं का चल पड़ा मानों साक्षात् काफिला सा
अंगुलियों के पोरों से दर्पण पर पसरी धूल को उकेरता रहा मैं
कुछ अचंभित ठगा- ठगा सा अनिमेष देखता रहा मैं।।
कंपकंपाती काया, रेंगती झुर्रियां, धुंधलाता ऐनक
बालों पर सफेदी, झुके से कंधे, फीकी होती रौनक
काम के बोझ तले दबती उसकी अतृप्त अभिलाषाओं को महसूस करता रहा मैं।
कुछ अचंभित, ठगा -ठगा सा अनिमेष देखता रहा मैं।।
तजुर्बा बोला मेरा उससे, न कर मलाल, यूं मत रह जग से अलग-थलग- विलग हो
अनंत दीप बन प्रकाशमान कर सबको, बस तू जगमग हो
उसके ख्वाबों की खनक की कसक को थोड़ा सा टीसता रहा मैं।
कुछ अचंभित, ठगा-ठगा सा अनिमेष देखता रहा मैं।।
वह मुस्कुराया और बोला कि बुढ़ापे की सनक हो चली तुझ पर भारी है
मैं तेरा प्रतिबिंब हूं पगले यह तेरी लाचारी लाइलाज बीमारी है
जवानी में बहकते देखा था लोगों को, बुढ़ापे में खुद को बहकते देखता रहा मैं।
कुछ अचंभित, ठगा-ठगा सा अनिमेष देखता रहा मैं।।
…….. ‘अनु-प्रिया’
Beautiful Poem/Kavita/ poetry on Budhapa
इस स्थिति से हममें से हर किसी को गुजरना है। इंसान को पता ही नहीं चलता कि कैसे बचपन के रास्ते से गुजर कर जवानी को नापते हुए उसने बुढ़ापे की चौखट पर कदम रख दिया। पूरी जिंदगी तो वह अपने परिवारजनों को संभालने, नौकरी-पेशे और पद-प्रतिष्ठा को प्राप्त करने में जुटा रहता है । इन सभी जिम्मेदारियों के बीच वह बूढ़ा भी होता जा रहा है, इसका उसे किंचित मात्र भी आभास नहीं होने पाता
Budhape ki sanak
kuchh achambhit ṭhagaa- ṭhagaa saa
amtakaraṇ mere amtaradvand machaa saa
dishaavihiin usakii mukhaakṛti ko animesh dekhataa rahaa main
vo shakhs khadaa dikhaa darpaṇ men thodaa milaa- anamilaa saa
jijñaasaaon kaa chal padaa maanon saakshaat kaaphilaa saa
amguliyon ke poron se darpaṇ par pasarii dhuul ko ukerataa rahaa main
kuchh achambhit ṭhagaa- ṭhagaa saa animesh dekhataa rahaa main..
kampakampaatii kaayaa, rengatii jhurriyaan, dhundhalaataa ainak
baalon par saphedii, jhuke se kandhe, phiikii hotii rownak
kaam ke bojh tale dabatii usakii atṛpt abhilaashaaon ko mahasuus karataa rahaa main.
kuchh achambhit, ṭhagaa -ṭhagaa saa animesh dekhataa rahaa main..
tajurbaa bolaa meraa usase, n kar malaal, yuun mat rah jag se alag-thalag- vilag ho
anant diip ban prakaashamaan kar sabako, bas tuu jagamag ho
usake khvaabon kii khanak kii kasak ko thodaa saa ṭiisataa rahaa main.
kuchh achambhit, ṭhagaa-ṭhagaa saa animesh dekhataa rahaa main..
vah muskuraayaa owr bolaa ki budhaape kii sanak ho chalii tujh par bhaarii hai
main teraa pratibinb huun pagale yah terii laachaarii laailaaj biimaarii hai
javaanii men bahakate dekhaa thaa logon ko, budhaape men khud ko bahakate dekhataa rahaa main.
kuchh achambhit, ṭhagaa-ṭhagaa saa animesh dekhataa rahaa main..
…….. ‘anu-priya’
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