भौतिक दुनिया से परे सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान सार्वभौमिक, सर्वज्ञ दिव्य शक्ति को प्राय: हम ईश्वर, भगवान, रब, प्रभु इत्यादि नामों से संबोधित करते हैं । ईश्वर एक है किंतु उसके रूप अलग-अलग हैं। हिंदुओं में कृष्ण, राम, शिव के रूप में तो मुसलमानों ने अल्लाह के रूप में , कहीं गुरु नानक के रूप में, कहीं जीसस, बुद्धा ,महावीर के रूप में। अनेक रूप होते भी वह सभी प्राणियों से एक जैसा व्यवहार करता है। उसकी यही गुणवत्ता उसे ईश्वर बनाती हैं। आकाश में, धरती पर, हवा में ,जल में, यहां तक की सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। जरूरत है तो बस उसको महसूस करने की। शायरी मेट्रो आपके समक्ष लाया है- Best भगवान पर कविता | God Poem in Hindi जिसे पढ़कर आप उस असीम शक्ति से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।
भगवान पर कविता | Bhagwan per Kavita
(1)
प्रभु! जाऊं कहां
Devotional Poem on God
तुमसे लड़कर भी जाऊं कहां….
जब हो जाता एकाकी मन
पतझड़ सा हो नीरस जीवन
सांसे बोझिल राहें मुश्किल
तन्हा सा सफर धूमिल मंजिल
फिर चैन-आराम सब पाऊं कहां
तुमसे लड़कर भी जाऊं कहां….
जो मिला खुशी से कुबूल किया
जो नहीं उसे फिर भूल गया
ख्वाहिश कोई बड़ी न मैंने की
फरमाइश कहीं कभी न की
अपना गम किसे सुनाऊं कहां
तुमसे लड़कर भी जाऊं कहां….
दुनिया है पत्थर तू तो नहीं
मेरा लुटा सब तुझे दिखा क्यों नहीं
मैंने सुना तू सबका खेवइया है
मेरी क्यों डूबी जीवन की नैया है
अपनी दुविधा किसे दिखाऊं कहां
तुमसे लड़कर भी जाऊं कहां….
तुम ठहरे जगत के चित्रकार
कभी देते बिगाड़ ,कभी संवार
तुममें शक्ति है अद्भुत समुंदर सी
सबके दुख को रखते अंदर पी
अपने गम के बवंडर छुपाऊं कहां
तुमसे लड़कर भी जाऊं कहां….
मंदिर घंटा भी टांग चुका
दीपों के दान किए मैंने
कितने ही व्रत-प्रण लिए मैंने
अब अपना शीश नवाऊं कहां
तुमसे लड़कर भी जाऊं कहां….
मेरी नहीं सुनोगे मान लिया
भक्तों को बहुत सताते हो
बेबस कर उन्हें रुलाते हो
तुझे छोड़ हाथ फैलाऊं कहां
तुमसे लड़कर भी जाऊं कहां….
Best Poem on God in Hindi
ईश्वर की कृपा पर कविता
(2)
ईश्वर ही जाने
गगन के उस पार क्या है, क्षणिक ये संसार क्या है
कोसों दूर हमारे, सूरज चांद सितारे
कुछ में भरा अंधेरा, कुछ देते उजियारे
बादल बिजली हवा पानी सबका सूत्रधार क्या है
ज्ञान-विज्ञान तक नहीं जान पाए जिसको
मौलाना पंडित तक नहीं पहचान पाए जिसको
सच-झूठ से परे उसका आखिर आकार क्या है
ईश्वर ही जाने सृष्टि का आधार क्या है….
लांघ ली हो दुनिया सारी तो अब कुछ स्वास भर लें तू
उसकी दिव्यता को समझ कुछ पुण्य प्राप्त कर ले तू
प्रभु की शरण ले जान उसका प्यार क्या है
ईश्वर ही जाने सृष्टि का आधार क्या है….
अपना-पराया भूल बस सब का हो जा
उलझनों को छोड़ बस रब का हो जा
माया उसकी जाने उसका व्यवहार क्या है
ईश्वर ही जाने सृष्टि का आधार क्या है….
आडंबरों से नहीं पा सकोगे उसे
कर्मकांडों से नहीं जीत पाओगे उसे
जीत-हार से परे वो चीज धुआंधार क्या है?
ईश्वर ही जाने सृष्टि का आधार क्या है….
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….’अनु-प्रिया’