Brihaspativar Vrat Katha and Aarti || बृहस्पतिवार व्रत कथा और आरती भगवान बृहस्पति की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बृहस्पतिवार व्रत हर गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा के लिए किया जाता है, जो ज्ञान, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माने जाते हैं। बृहस्पतिवार व्रत कथा में भगवान बृहस्पति के महत्व और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पूजा विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। बृहस्पतिवार की आरती से पूजा का आध्यात्मिक प्रभाव और भी गहरा होता है। यह व्रत विशेष रूप से घर में सुख-शांति, समृद्धि और जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए किया जाता है।
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गुरुवार का दिन बृहस्पति देव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति मिल सकती है। अविवाहित कन्याएं इस व्रत को यह आशा लेकर करती हैं कि उन्हें मनचाहा वर मिलेगा और विवाह में हो रही देरी दूर होगी। मान्यता है कि जो व्यक्ति गुरुवार व्रत को साल में कम से कम एक बार करता है, उसके जीवन में कभी भी आर्थिक तंगी नहीं आती। धर्म शास्त्रों के अनुसार, गुरुवार व्रत को साल में 16 बार करना चाहिए, क्योंकि इससे व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सफल होता है। 16 गुरुवार व्रत करने के बाद 17वें गुरुवार को इसे उद्यापन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
Thursday Vrat Pooja Vidhi | बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि
बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि को श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है।
इस व्रत को गुरुवार को सूर्योदय से पहले शुरू करें।
सबसे पहले स्वच्छ होकर स्नान करें और पीले रंग के कपड़े पहने।
भगवान बृहस्पति की पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान पर आसन लगाकर बैठें।
फिर भगवान बृहस्पति की प्रतिमा या चित्र को साफ करें और उस पर पीला वस्त्र चढ़ाएं।
पूजा में हल्दी, चने की दाल, गुड़, सफेद वस्त्र, और पीला फूल चढ़ाएं।
भगवान विष्णु को चंदन लगाएं। विष्णुचालीसा पढ़े।
भगवान बृहस्पति का ध्यान करके उनका मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः बृंहस्पतये नमः” का 108 बार जाप करें।
इस व्रत में उपवास रखा जाता है, लेकिन फलाहार लिया जा सकता है।
व्रति को दिनभर शांति से बृहस्पति देव की आराधना करनी चाहिए।
पूजा के अंत में बृहस्पतिवार की आरती करें और किसी गरीब या जरूरतमंद को भोजन, चने की दाल, या पीला वस्त्र दान करें।
यह व्रत विशेष रूप से बुद्धिमत्ता, समृद्धि और स्वास्थ्य में वृद्धि के लिए किया जाता है।
बृहस्पतिवार व्रत से जुड़ी कुछ खास बातें
बृहस्पति ग्रह की शांति: जिनकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो, उन्हें यह व्रत करना चाहिए। इससे ग्रह दोष शांत होते हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है।
गुरुवार को नियम पालन: व्रत रखने वाले को गुरुवार के दिन बाल धोने, कपड़े धोने, और नाखून काटने से बचना चाहिए। यह परंपराएं व्रत की पवित्रता बनाए रखने के लिए हैं।
मार्गशीर्ष माह: बृहस्पतिवार व्रत की शुरुआत किसी भी शुभ माह या तिथि से की जा सकती है, लेकिन विशेष रूप से इसे मार्गशीर्ष (अगहन) और सावन (श्रावण) महीने में शुरू करना अधिक शुभ माना जाता है।
बृहस्पतिवार व्रत से जुड़ी सावधानियां
- इस दिन नाखून काटने और बाल धोने से बचें।
- घर को साफ-सुथरा रखें और किसी से भी अपशब्द न बोलें।
- नमक का सेवन न करें।
- केवल पीले वस्त्र धारण करें और पीले रंग के भोजन का ही सेवन करें।
- इस दिन झूठ और धोखे से बचें।
बृहस्पतिवार व्रत के फायदे
- व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है।
- वैवाहिक जीवन में सुधार और संतान सुख मिलता है।
- रोग और शोक से मुक्ति मिलती है।
- मानसिक शांति और जीवन में सकारात्मकता आती है।
Complete Brihaspati Vrat Katha – गुरुवार व्रत की कथा
॥ अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा ॥
प्राचीन समय की बात है कि एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा था। वह प्रत्येक वृहस्पतिवार को व्रत रखता और विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करता था। उसके राज-काज में हर ओर सुख-शांति का वातावरण था। लेकिन राजा की रानी को यह व्रत और दान का कार्य बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। न ही वह स्वयं व्रत करती और न ही किसी को दान-पुण्य में सहयोग देती। वह अक्सर राजा को भी दान और व्रत करने से मना करती।
एक बार की बात है कि राजा शिकार खेलने के लिए जंगल चला गया। रानी घर पर अकेली थी, और उसके साथ उसकी दासी थी। उसी समय गुरु वृहस्पति भगवान साधु का वेश धारण कर राजा के द्वार पर भिक्षा मांगने आए। साधु ने रानी से भिक्षा मांगी तो रानी क्रोधित होकर बोली, “हे साधु महाराज! मैं इस दान और पुण्य से बहुत तंग आ चुकी हूं। आप ऐसा कोई उपाय बताइए, जिससे यह सारा धन नष्ट हो जाए और मैं शांति से अपना जीवन जी सकूं।”
साधु बने वृहस्पतिदेव ने रानी की बात सुनकर कहा, “हे देवी! तुम बड़ी विचित्र हो। धन और संतान को लोग भगवान की देन मानते हैं और इन्हें पाकर प्रसन्न होते हैं। तुम्हारे पास यदि अधिक धन है तो उसे पुण्य कार्यों में लगाओ। इससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरेंगे।” लेकिन रानी को साधु की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। वह बोली, “मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मुझे संभालना पड़े या जिसके कारण मुझे दान और पुण्य करने पड़ें।”
साधु ने कहा, “यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो जैसा मैं बताता हूं, वैसा ही करो। वृहस्पतिवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने बाल पीली मिट्टी से धोना, केश धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस और मदिरा ग्रहण करना, और अपने कपड़े धोबी के पास धुलने भेजना। इस प्रकार सात वृहस्पतिवार तक ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा।” इतना कहकर साधु बने वृहस्पतिदेव अंतर्धान हो गए।
रानी ने साधु की बात मानी और वैसा ही करने लगी। केवल तीन वृहस्पतिवार के बाद ही उसकी समस्त संपत्ति नष्ट हो गई। भोजन के लिए घर में दाने-दाने की तंगी हो गई। परिवार के सभी सदस्य भूख से तड़पने लगे। तब राजा ने रानी से कहा, “हे रानी! तुम यहीं रहो, मैं किसी अन्य देश में जाऊंगा। यहां मुझे सभी लोग पहचानते हैं, इसलिए मैं यहां कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता।” ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचता और इस प्रकार अपना जीवन यापन करता।
इधर, रानी और दासी घर पर बहुत दुखी रहने लगीं। एक समय ऐसा आया कि रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा। तब रानी ने अपनी दासी से कहा, “हे दासी! पास के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है। उसके पास जाकर कुछ मांग ले आ, ताकि हमारा गुजारा हो सके।”
दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन वृहस्पतिवार था और रानी की बहन व्रत-कथा सुन रही थी। दासी ने अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने कथा समाप्त होने से पहले कुछ नहीं कहा। यह देखकर दासी क्रोधित और दुखी होकर वापस लौट आई। उसने रानी को सारी बात बताई। यह सुनकर रानी को अपने भाग्य पर क्रोध आया और उसने अपने किए पर पछतावा किया।
कथा समाप्त होने के बाद रानी की बहन ने सोचा कि दासी बहुत दुखी होगी। उसने कथा समाप्त कर रानी के घर जाकर कहा, “हे बहन! तुम्हारी दासी आई थी, लेकिन कथा सुनते समय उठना और बोलना वर्जित है। इसलिए मैं उससे बात नहीं कर सकी। अब बताओ, वह क्यों आई थी?”
रानी ने रोते हुए अपनी गरीबी और कष्ट की कहानी सुनाई। यह सुनकर बहन ने कहा, “हे बहन! वृहस्पतिदेव भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। यदि तुम व्रत रखोगी, तो तुम्हारी सभी परेशानियां समाप्त हो जाएंगी। केले की जड़ में चने की दाल और मुनक्के से भगवान विष्णु का पूजन करना, पीला भोजन करना और कथा सुनना। ऐसा करने से वृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं।”
रानी और दासी ने वृहस्पतिवार व्रत करने का निश्चय किया। व्रत के दिन घुड़साल से चना और गुड़ बीनकर लाईं और पूजा की। पीला भोजन उनके पास नहीं था, लेकिन वृहस्पतिदेव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए। वे साधारण व्यक्ति के रूप में आए और उन्हें पीला भोजन दिया। धीरे-धीरे उनकी स्थिति सुधरने लगी।
कुछ समय बाद वृहस्पतिदेव की कृपा से राजा परदेश से लौट आया। राजा और रानी ने मिलकर वृहस्पतिदेव का व्रत और पूजा शुरू की। वे पुण्य कार्यों में धन लगाने लगे। उनकी समृद्धि और यश चारों ओर फैल गया।
इस प्रकार वृहस्पतिवार व्रत और कथा ने उनके जीवन को बदल दिया। यह कथा हमें सिखाती है कि श्रद्धा और भक्ति से भगवान प्रसन्न होते हैं और सभी कष्ट हर लेते हैं।
वृहस्पतिदेव की कहानी और व्रत का महत्त्व
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बहुत समय पहले एक निर्धन ब्राह्मण था जिसके पास संतान नहीं थी। वह रोज़ पूजा-पाठ करता और भगवान का ध्यान करता था, लेकिन उसकी पत्नी न तो स्नान करती थी और न ही देवताओं का पूजन करती थी। इस कारण से भगवान उससे नाराज़ रहते थे। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया, और जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, उसने भगवान विष्णु का जप करना शुरू किया। वह वृहस्पतिवार का व्रत भी करने लगी और रास्ते में जौ बिखेरती जाती, जो बाद में सोने में बदल जाते थे। एक दिन उसकी मां ने देखा कि उसकी बेटी सोने के जौ को साफ कर रही थी और उसने बेटी से कहा कि सोने के जौ को साफ करने के लिए सोने का सूप चाहिए। अगले दिन कन्या ने वृहस्पति देव से सोने का सूप माँगा, और वृहस्पति देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की।
कुछ समय बाद राजकुमार को कन्या की सुंदरता और कार्यों से प्रेम हो गया और उसका विवाह राजकुमार से हो गया। शादी के बाद ब्राह्मण और उसकी पत्नी पहले जैसी गरीबी में जीने लगे। ब्राह्मण अपनी बेटी से मिलने गया और उसे अपनी स्थिति बताई। कन्या ने अपने पिता को धन दिया और साथ ही अपनी मां को व्रत करने की सलाह दी। जब ब्राह्मण की पत्नी ने व्रत करना शुरू किया तो उनका जीवन सुधरने लगा और वे स्वर्ग को प्राप्त हुई। इसके बाद, वृहस्पतिवार का व्रत और कथा के प्रभाव से राजा और उसके राज्यवासियों के जीवन में सुख और समृद्धि आई।
राजा ने वृहस्पतिवार के दिन व्रत करने की आदत डाली, और इसका प्रभाव यह हुआ कि उसे बहुत अधिक धन और सुख मिलने लगे। इस दौरान राजा ने अपनी बहन से मिलने का निश्चय किया और यात्रा के दौरान कई चमत्कारी घटनाएं घटी। एक दिन राजा ने अपनी बहन के घर व्रत की कथा सुनाई, और उसी दिन से उसकी बहन को संतान का आशीर्वाद मिला। राजा ने अपनी रानी से व्रत की कथा सुनी थी, और इसके बाद उसकी रानी गर्भवती हुई और उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। वृहस्पतिवार का व्रत और कथा सत्य दिल से करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-शांति रहती है।
आरती वृहस्पति देवता की
जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
जय बृहस्पति देवा ओम…
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
जय बृहस्पति देवा ओम…
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥
जय बृहस्पति देवा ओम…
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥
जय बृहस्पति देवा ओम…
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
जय बृहस्पति देवा ओम…
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
जय बृहस्पति देवा ओम…
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥
जय बृहस्पति देवा ओम…
सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥
Brihaspativar Vrat Katha PDF
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बृहस्पतिवार व्रत क्या है और इसे क्यों किया जाता है?
बृहस्पतिवार व्रत, भगवान बृहस्पति (वृहस्पति देव) को समर्पित एक खास व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से वैवाहिक सुख, शिक्षा, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान बृहस्पति की पूजा से व्यक्ति को सुख-शांति और मानसिक शांति मिलती है।
बृहस्पतिवार व्रत के लाभ क्या हैं?
इस व्रत को करने से व्यक्ति को जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति प्राप्त होती है। अविवाहित कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति और विवाह में हो रही देरी से मुक्ति मिल सकती है। इसके अलावा, यह व्रत आर्थिक समस्याओं और मानसिक तनाव को भी दूर करता है।
घर पर बृहस्पतिवार व्रत कैसे करें?
बृहस्पतिवार व्रत में व्रति को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और भगवान बृहस्पति की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद, बृहस्पति देव के मंत्रों का जाप करें और व्रत के नियमों का पालन करें। दिनभर उपवासी रहकर शाम को भगवान की आरती करें और व्रत को पूर्ण करें।
क्या अविवाहित कन्याएँ बृहस्पतिवार व्रत विवाह के लिए कर सकती हैं?
हां, अविवाहित कन्याएँ इस व्रत को अपने इच्छित वर की प्राप्ति और विवाह में हो रही देरी को दूर करने के लिए करती हैं। बृहस्पतिवार व्रत में भगवान बृहस्पति की पूजा करने से मनवांछित वर प्राप्त करने में मदद मिलती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में बृहस्पतिवार का क्या महत्व है?
बृहस्पतिवार का दिन भगवान बृहस्पति और उनके आशीर्वाद का दिन है। बृहस्पति देव को ज्ञान, समृद्धि, और दया का देवता माना जाता है। इनकी पूजा से व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता और आशीर्वाद मिलता है।
बृहस्पतिवार की आरती का सही तरीका क्या है?
बृहस्पतिवार की आरती का सही तरीका है कि इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ गायन करें। आरती में भगवान बृहस्पति की महिमा का वर्णन होता है। आरती के दौरान दीपक जलाकर, पुष्प चढ़ाकर और मन से मंत्रों का जाप करते हुए पूजा करें।
बृहस्पतिवार व्रत से आर्थिक समस्याएँ कैसे दूर होती हैं?
बृहस्पतिवार व्रत से आर्थिक तंगी को दूर करने का विश्वास है क्योंकि यह व्रत भगवान बृहस्पति के आशीर्वाद को आकर्षित करता है, जो समृद्धि और धन के देवता माने जाते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति की वित्तीय स्थिति में सुधार हो सकता है।